2025 Prayagraj
Kumbh Mela
2025 Prayagraj Kumbh Mela is an event held from January 13, 2025 to February 26, 2025 in Prayagraj, India.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाई।
पूजा-अर्चना के बाद अखिलेश यादव महाकुंभ के इस्कॉन शिविर भी गए ।अखिलेश यादव ने सेक्टर-19 में अदाणी और इस्कॉन के सहयोग से
चल रहे महाप्रसाद सेवा किचन का निरीक्षण किया। इस्कॉन के किचन में हर दिन एक लाख श्रद्धालुओं के लिए भोजन तैयार किया जा रहा
है। अखिलेश यादव ने खुद अपने हाथों से महाप्रसाद बनाया और सेवा में भाग लिया साथ ही खुद भी प्रसाद ग्रहण किया। महाकुंभ में
मौजूद श्रद्धालुओं ने अदाणी ग्रुप और इस्कॉन की इस पहल की खूब तारीफ कर रहे हैं।
हम आपको बतां दें कि महाकुंभ 2025 को सेवा भाव से संपन्न करने के लिए अदाणी समूह और इस्कॉन ने हाथ मिलाया है। इसके तहत
महाकुंभ में 50 लाख श्रद्धालुओं के लिए महाप्रसाद सेवा का संचालन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक किया जाएगा। इस्कॉन ने मेला
क्षेत्र और उसके बाहर महाप्रसाद बनाने के लिए दो किचन तैयार किए गए हैं और महाकुंभ क्षेत्र में 40 स्थानों पर महाप्रसाद सेवा
श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध होगी।
अदाणी और गीता प्रेस मिलकर में मुफ्त बांट रहे है 'आरती संग्रह' की पुस्तकें
धार्मिक समागम और आध्यात्मिक एकता के प्रतीक महाकुंभ 2025 में अदाणी समूह और गीता प्रेस श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक वातावरण
का अनुभव प्रदान कर रहें हैं। महाकुंभ में गीता प्रेस, अदाणी समूह के साथ मिलकर सनातन धर्मावलंबियों में 'आरती संग्रह' बांट
रहे हैं। गीता प्रेस की स्थापना हुए 100 वर्ष पहले हुई और यह श्रद्धालुओं को सनातन धर्म के मूल्यों और आदर्शों से जोड़ने का
एक माध्यम है। अदाणी समूह उनके इस प्रयास से जुड़कर महाधर्म में अपना योगदान दे रहा है।
जानिए महाकुंभ का इतिहास
कुंभ मेले की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं, खासकर समुद्र मंथन या सागर मंथन की कथा में निहित है। प्राचीन ग्रंथों के
अनुसार, यह ब्रह्मांडीय घटना अमरता के दिव्य अमृत प्राप्त करने के लिए देवों (देवताओं) और असुरों (राक्षसों) द्वारा किया गया
एक संयुक्त प्रयास था। मंथन के दौरान, पवित्र अमृत से भरा एक कुंभ (घड़ा) निकला। असुरों से इसे बचाने के लिए, भगवान विष्णु
ने मोहिनी का रूप धारण करके घड़े को अपने कब्जे में ले लिया और भाग गए। रास्ते में, अमृत की कुछ बूँदें चार स्थानों पर
गिरीं- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक- इन स्थलों को पवित्र किया। ये स्थान अब बारी-बारी से कुंभ मेले की मेजबानी
करते हैं। कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं में मुख्य रूप से तपस्वी, संत, साधु, साध्वी, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के
श्रद्धालु शामिल होते हैं। कुंभ मेले के दौरान, कई समारोह होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे
'पेशवाई' कहा जाता है, 'अमृत स्नान' के दौरान नागा साधुओं की चमचमाती तलवारें और अनुष्ठान समेत कई अन्य सांस्कृतिक
गतिविधियाँ जो कुंभ मेले में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं।